वर्ल्ड साइट डे पर डॉ. विशाली गुप्ता, प्रोफेसर, विट्रियोरेटिनल और यूविया, एडवांस्ड आई सेंटर, पीजीआई चंडीगढ़ ने दृष्टि दोष के नुकसानदायक प्रभावों और प्रिवेंटेबल दृष्टिहीनता को खत्म करने के महत्व पर प्रकाश डाला
चंडीगढ़, 12 अक्तूबर ( विजय ) दुनिया भर में दो मिलियन (20 लाख) से ज्यादा लोगों आंखों की भिन्न स्थितियों के साथ रहते हैं। अकेले भारत में लाखों लोग ऐसे हैं जो प्रिवेंटेबल विजन लॉस (दृष्टिहीनता) के शिकार हैं। एम्स के नेशनल ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इंपेयरमेंट सर्वे इंडिया 2015-19 के अनुसार 50 साल से ऊपर की आयु के 1.99% भारतीय दृष्टिहीनता के शिकार हैं।[i] जबकि संभावित दृष्टिहीनता का शिकार होने वालों की संख्या चिन्ताजनक है और इससे भी बड़ी चिन्ता यह है कि जिन कारणों से यह सब होता है उनका पता आमतौर पर नहीं किया जाता है। डॉ. विशाली गुप्ता, प्रोफेसर, विट्रियोरेटिनल और यूविया, एडवांस्ड आई सेंटर, पीजीआई चंडीगढ़ ने कहा, “भारत में प्रिवेंटेबल ब्लाइंडनेस और दृष्टि दोष का बोझ बहुत ज्यादा है और इसका कारण है आंखों की बीमारी के बढ़ते मामले और उनकी मौजूदगी। मोतियाबिन्द – आंखों की एक आम स्थिति है – इसका उपचार सर्जरी के जरिए किया जाता है, इससे दृष्टिहीनता रोकी जा सकती है। सच तो यह है कि आयुष्मान भारत योजना के तहत यह सर्जरी निर्धारित केंद्रों पर मुफ्त कराई जा सकती है। यही नहीं, ग्लूकोमा के मामलों का जल्दी पता लगाने के लिए गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और सरकार द्वारा कई पहलें शुरू की गई हैं। इसके लिए लंबे समय तक दवाइयों से प्रबंध की आवश्यकता होती है ताकि इंट्राओकुलर दबाव को नियंत्रण में रखा जा सके। वैसे तो संभव है कि ग्लूकोमा का कोई गंभीर लक्षण न हो लेकिन धीरे-धीरे दृष्टि चली गई तो संभव है इसे ठीक नहीं किया जा सके और इसलिए थेरैपी के पालन की आवश्यकता होती है।”
इसका नतीजा यह है कि बड़ी संख्या में लोग स्थायी दृष्टिहीनता के शिकार हो जाते हैं। इनमें मोतियाबिन्द जैसे कारण शामिल हैं जो 50 साल या उससे ज्यादा के 66.2% लोगों में दृष्टिहीनता के लिए जिम्मेदार हैं।[ii] इसके अलावा ग्लूकोमा (ऑप्टिक नर्व को नुकसान) या रेटिनल बीमारी जैसे उम्र से संबंधित मैकुलर डीजेनरेशन (एएमडी) और डायबिटीक मैकुलर एडिमा (डीएमई) जो व्यक्ति की आंखों के पिछले हिस्से में टिश्यू की परत को प्रभावित करता है। एएमडी और डीएमई दृष्टिहीनता के अग्रणी कारण हैं और दीर्घकालिक तथा प्रगतिशील हैं। दूसरी ओर, बीमारी का जल्दी पता लग जाए और समय पर उपचार किया जाए तो रेटिनल बीमारियों का प्रभावी प्रबंध किया जा सकता है। इसके अलावा, ग्लूकोमा 60 साल और ज्यादा के लोगों में दृष्टिहीनता के अग्रणी कारणों में एक है।
आंखों की बीमारियों का उपचार और प्रबंध
दृष्टिहीनता रोकने के लिए बीमारी का शुरू में ही पता चलना महत्वपूर्ण है। इसके लक्षणों को पहचानना और स्क्रीनिंग करवाना इसे ठीक रखने की कुंजी हो सकती है। उपचार के कई विकल्प उपलब्ध हैं जिससे बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना और उपलब्ध विकल्पों को समझना और उन पर चर्चा करना इसे रोकने और आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के प्रमुख कदम में एक हो सकता है। भारत में जो कुछ विकल्प उपलब्ध हैं उनमें लेजर फोटो कोएगुलेशन, एंटी-वीईजीएफ (वैस्कुलर एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर) इंजेक्शन, सर्जरी और कांबिनेशन थेरैपी तथा इनमें लेजर और वीईजीएफ उपचार शामिल है। इन पर विचार करना खासतौर से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि महामारी के दौरान उपचार के साथ आंखों की नियमित देखभाल में कमी आई है और इस कारण प्रभावित मरीजों में स्वास्थ्य से संबंधित जटिलताएं देखने को मिलीं। इनमें युवा आबादी भी है। निर्धारित उपचार का सख्ती से अनुपालन और जीवनशैली में अनुसंशित सुधार से व्यक्तियों को आंखों की अपनी बीमारियों को नियंत्रित रखने में सहायता मिलेगी और इस तरह उन्हें बेहतर परिणाम का लाभ मिल सकता है।
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